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आधुनिक भारत में संवैधानिक विकास (भाग - ०१)

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आधुनिक भारतवर्ष में स्थानीय स्वशासन का विकास  एक स्वरुप ये भी  भारत में स्थानीय स्वशासन का विकास वैसे तो स्थानीय स्वशासन मौर्य काल से ही अस्तित्व में है, परंतु वर्तमान स्वरूप में स्थानीय स्वशासन ब्रिटिश कंपनी के रेजिडेंशियल नगरों में दिखाई देता है।   1687 में बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने सर्वप्रथम मद्रास प्रेसिडेंसी में नगर निगम स्थापित करने की अनुमति दी।  1726 में महापौर के न्यायालय की स्थापना मद्रास में की गई।  1793 का चार्टर एक्ट से नागरिक संस्थाओं को वैधानिक अधिकार मिल गया।  1840 से 1853 के मध्य करदाताओं को निगमों के सदस्यों को चुनने का अधिकार भी मिल गया।  1893 मुंबई की पूरी शक्ति एक मनोनीत आयुक्त के हाथ में दे दी गई।  1842 के अधिनियम से प्रेसीडेन्सी नगरों के बाहर भी इन संस्थाओं का आरंभ हुआ।  इसका उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं का प्रबंधन करना था।  1869 के अधिनियम द्वारा प्रत्येक जिले में एक स्थानीय समिति की स्थापना की गई, यह समितियां कुछ कर लगाती थी और स्वास्थ्य शिक्षा एवं अन्य स्थानीय अवस्थाओं की देखरेख करती थी।  भारतीय परिषद अधिनियम 1808 के द्वारा वैधानिक व

संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य

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SDG संयुक्त राष्ट्र ने विश्व के लोगो को बेहतर जीवन स्तर तक ले जाने के लिए कुल १७ लक्ष्य तय किये हैं  वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र में महत्त्वाकांक्षी ‘सतत विकास लक्ष्य’ प्रस्तुत किये गए। इनमें 17 Goals एवं 169 targets निर्धारित किये गए हैं जो वर्ष 2016-2030 तक के लिये लक्षित है।  ये 17 लक्ष्य इस प्रकार हैं; विस्तृत रूप में अध्ययन हेतु दिए गए लिंक को फॉलो कर सकते हैं - https://sustainabledevelopment.un.org/sdgs  लक्ष्य     उद्येश्य    विवरण   लक्ष्य -1  गरीबी की पूर्णतः समाप्ति  दुनिया के हर देश में सभी लोगों की अत्यधिक गरीबी को समाप्त करना. अभी उन लोगों अत्यधिक गरीब माना जाता है जो कि प्रतिदिन $ 1.25 से कम में जिंदगी गुजारते हैं.  लक्ष्य -2   भुखमरी की समाप्ति    भुखमरी की समाप्ति, खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा  लक्ष्य -3   अच्छा स्वास्थ्य और जीवनस्तर  सभी को स्वस्थ जीवन देना और सभी के जीवनस्तर में सुधार लाना.  लक्ष्य -4   गुणवत्तापूर्ण शिक्षा  समावेशी और न्यायसंगत, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना और सभी के लिए आज

चक्रीय अर्थव्यवस्था एवं रेखीय अर्थव्यवस्था (सर्कुलर एंड लिनियर इकोनामी)

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  दुनिया की सभी अर्थव्यवस्थाओं में   Take, Make, Use   और Dispose  की पद्धति का प्रचलन रहा है।  इस पद्धति से तात्पर्य एक ऐसी व्यवस्था से है जिसमें सर्वप्रथम प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जाता है,  उसके पश्चात संसाधनों का रूप एवं गुण परिवर्तन करके बाजार की मांग के अनुरूप वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। तत्पश्चात उत्पादित वस्तुओं को उपयोग हेतु उपभोक्ता तक पहुंचाया जाता है, उपभोक्ता वस्तुओं का उपयोग करने के पश्चात उन्हें या तो फेंक देता है या नष्ट कर देता है।  यह एक रेखीय अर्थव्यवस्था (लीनियर इकॉनमी)  का उदाहरण है।  इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में वस्तुओं के उपभोग के पश्चात उनके पुनर्चक्रण की कोई व्यवस्था नहीं होती। इस व्यवस्था का सकारात्मक पक्ष यह है कि इसके अंतर्गत उत्पादित वस्तुओं की गुणवत्ता उच्च होती है, साथ ही उत्पादन प्रारंभ करने हेतु सीमित निवेश की आवश्यकता होती है। यदि इस व्यवस्था का नकारात्मक पक्ष देखा जाए तो सर्वप्रथम प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन की बात आती  हैं, क्योंकि उपभोग  की गई वस्तुओं के पुनर्चक्रण की कोई व्यवस्था न होने के कारण, प्रत्येक इकाई उत्पादन के

जैव विविधता एक परिचय

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जैव विविधता  (वर्तमान परिप्रेक्ष्य में एक परिचय)      जैव विविधता (बायोडायवर्सिटी) मूलतः   जीवीय विविधता (बायोलॉजिकल डायवर्सिटी) शब्द से   संबंधित है। जीवीय विविधता शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग प्रसिद्ध पर्यावरणविद् ' लज्जाय ' द्वारा किया गया था । इनके अतिरिक्त पर्यावरणविद् ' दासमैन ' के द्वारा भी इस शब्द के प्रयोग मिलते हैं । जहां तक जैव विविधता (बायोडायवर्सिटी) शब्द के उल्लेख का प्रश्न है तो ' रोन्जन ' नाम के पर्यावरणविद् के द्वारा सर्वप्रथम इस शब्द का प्रयोग किया गया। कहीं-कहीं इस संबंध में प्रोफेसर ' विलसन ' के नाम का भी उल्लेख मिलता है ।   वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह शब्द चर्चा में तब आया जब 1987  नॉर्वे में हुए एक सम्मेलन में नॉर्वे के प्रधानमंत्री के द्वारा सतत या धारणीय विकास के विचार के साथ अपनी "ब्रंटलैंड"   रिपोर्ट" प्रस्तुत की गई।    इस रिपोर्ट के द्वारा सर्वप्रथम विश्व के समक्ष धारणीय विकास की विचारधारा को प्रस्तुत किया गया।   धारणीय विकास की विचारधारा की मूल भावना यह थी कि "हम अपनी पीढ़ी के विकास हेतु प्

रक्त (क्रोमोप्रोटीन) भाग - ०१

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अपने प्रवाह के दौरान रक्त, हमारे शरीर की करोड़ों कोशिकाओं तक विभिन्न आवश्यक तत्व, जो हमें भोजन से प्राप्त होते हैं, पहुंचाता है । साथ ही शरीर के अवशिष्ट पदार्थों एवं मृत कोशिकाओं को हटाता है। रक्त हमारे शरीर के सभी अंगों तक ऊष्मा का संचरण भी करता है, जो हमारे शरीर को विभिन्न प्रकार के संक्रमण से बचाती हैं ।  रक्त मूल रूप से एक पीले रंग  के पदार्थ प्लाज्मा से बना होता है । जिस में लाल रक्त कणिकाएं प्रवाहित होते हैं।  इनका प्रमुख कार्य हमारे फेफड़ों से ऑक्सीजन ग्रहण करके शरीर की कोशिकाओं तक पहुंचाना है । रक्त में सम्मिलित श्वेत रक्त कणिकाएं हमारे शरीर को प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करती हैं। रक्त का एक अवयव बिंबाणु / प्लेटलेट्स भी होता है। जिसका कार्य हवा के संपर्क में आने पर रक्त का थक्का जमाना होता है। जिससे चोट लगने पर रक्त की ज्यादा हानि नहीं होने पाती।  रक्त को एक समान गति से शरीर में प्रवाहित करने का कार्य हृदय दो नलिकाओं धमनी एवं शिरा की सहायता से किया जाता है ।  धमनी ऑक्सीजन युक्त रक्त को हृदय से शरीर के अन्य भागों तक तथा शिरा   ऑक्सीजन रहित रक्त को शरीर के अन्य

सौर मंडल

सौरमंडल के ग्रह और उनके महत्वपूर्ण तथ्यों की सूची सौरमंडल के ग्रह और उनके महत्वपूर्ण तथ्य: (Solar System Planets and Interesting GK Facts in Hindi) सौरमंडल में सूर्य और वह खगोलीय पिंड सम्मलित हैं, जो इस मंडल में एक दूसरे से गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा बंधे हैं। किसी तारे के इर्द गिर्द परिक्रमा करते हुई उन खगोलीय वस्तुओं के समूह को ग्रहीय मण्डल कहा जाता है जो अन्य तारे न हों, जैसे की ग्रह, बौने ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, क्षुद्रग्रह, उल्का, धूमकेतु और खगोलीय धूल। हमारे सूरज और उसके ग्रहीय मण्डल को मिलाकर हमारा सौर मण्डल बनता है। इन पिंडों में आठ ग्रह, उनके 166 ज्ञात उपग्रह, पाँच बौने ग्रह और अरबों छोटे पिंड शामिल हैं। इन छोटे पिंडों में क्षुद्रग्रह, बर्फ़ीला काइपर घेरा के पिंड, धूमकेतु, उल्कायें और ग्रहों के बीच की धूल शामिल हैं। सौर मंडल के चार छोटे आंतरिक ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल ग्रह जिन्हें स्थलीय ग्रह कहा जाता है, मुख्यतया पत्थर और धातु से बने हैं। और इसमें क्षुद्रग्रह घेरा, चार विशाल गैस से बने बाहरी गैस दानव ग्रह, काइपर घेरा और बिखरा चक्र शामिल हैं। काल्पनिक और्ट बादल भ