दुनिया की सभी अर्थव्यवस्थाओं में Take, Make, Use और Dispose की पद्धति का प्रचलन रहा है। इस पद्धति से तात्पर्य एक ऐसी व्यवस्था से है जिसमें सर्वप्रथम प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जाता है, उसके पश्चात संसाधनों का रूप एवं गुण परिवर्तन करके बाजार की मांग के अनुरूप वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। तत्पश्चात उत्पादित वस्तुओं को उपयोग हेतु उपभोक्ता तक पहुंचाया जाता है, उपभोक्ता वस्तुओं का उपयोग करने के पश्चात उन्हें या तो फेंक देता है या नष्ट कर देता है। यह एक रेखीय अर्थव्यवस्था (लीनियर इकॉनमी) का उदाहरण है। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में वस्तुओं के उपभोग के पश्चात उनके पुनर्चक्रण की कोई व्यवस्था नहीं होती। इस व्यवस्था का सकारात्मक पक्ष यह है कि इसके अंतर्गत उत्पादित वस्तुओं की गुणवत्ता उच्च होती है, साथ ही उत्पादन प्रारंभ करने हेतु सीमित निवेश की आवश्यकता होती है।
Popular posts from this blog
गुप्त कालीन कला व संस्क्रति
देवनागरी गुप्तकालीन कला और स्थापत्य दशावतार विष्णु मन्दिर , देवगढ़ गुप्त काल में कला की विविध विधाओं जैसे वास्तु, स्थापत्य, चित्रकला , मृदभांड, कला आदि में अभूतपूर्ण प्रगति देखने को मिलती है। गुप्तकालीन स्थापत्य कला के सर्वोच्च उदाहरण तत्कालीन मंदिर थे। मंदिर निर्माण कला का जन्म यहीं से हुआ। इस समय के मंदिर एक ऊँचे चबूतरें पर निर्मित किए जाते थे। चबूतरे पर चढ़ने के लिए चारों ओर से सीढ़ियों का निर्माण किया जाता था। देवता की मूर्ति को गर्भगृह (Sanctuary) में स्थापित किया गया था और गर्भगृह के चारों ओर ऊपर से आच्छादित प्रदक्षिणा मार्ग का निर्माण किया जाता था। गुप्तकालीन मंदिरों पर पार्श्वों पर गंगा, यमुना, शंख व पद्म की आकृतियां बनी होती थी। गुप्तकालीन मंदिरों की छतें प्रायः सपाट बनाई जाती थी पर शिखर युक्त मंदिरों के निर्माण के भी अवशेष मिले हैं। गुप्तकालीन मंदिर छोटी-छोटी ईटों एवं पत्थरों से बनाये जाते थे। ‘भीतरगांव का मंदिर‘ ईटों से ही निर्मित है। गुप्तकालीन महत्त्वपूर्ण मंदिर मंदिर. ...
आधुनिक भारत में संवैधानिक विकास (भाग - ०१)
आधुनिक भारतवर्ष में स्थानीय स्वशासन का विकास एक स्वरुप ये भी भारत में स्थानीय स्वशासन का विकास वैसे तो स्थानीय स्वशासन मौर्य काल से ही अस्तित्व में है, परंतु वर्तमान स्वरूप में स्थानीय स्वशासन ब्रिटिश कंपनी के रेजिडेंशियल नगरों में दिखाई देता है। 1687 में बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने सर्वप्रथम मद्रास प्रेसिडेंसी में नगर निगम स्थापित करने की अनुमति दी। 1726 में महापौर के न्यायालय की स्थापना मद्रास में की गई। 1793 का चार्टर एक्ट से नागरिक संस्थाओं को वैधानिक अधिकार मिल गया। 1840 से 1853 के मध्य करदाताओं को निगमों के सदस्यों को चुनने का अधिकार भी मिल गया। 1893 मुंबई की पूरी शक्ति एक मनोनीत आयुक्त के हाथ में दे दी गई। 1842 के अधिनियम से प्रेसीडेन्सी नगरों के बाहर भी इन संस्थाओं का आरंभ हुआ। इसका उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं का प्रबंधन करना था। 1869 के अधिनियम द्वारा प्रत्येक जिले में एक स्थानीय समिति की स्थापना की गई, यह समितियां कुछ कर लगाती थी और स्वास्थ्य शिक्षा एवं अन्य स्थानीय अवस्थाओं की देखर...
सटीक एवम महत्वपूर्ण जानकारी👌👌
ReplyDelete