जैव विविधता एक परिचय


जैव विविधता

 (वर्तमान परिप्रेक्ष्य में एक परिचय)   


जैव विविधता (बायोडायवर्सिटी) मूलतः  जीवीय विविधता (बायोलॉजिकल डायवर्सिटी) शब्द से संबंधित है। जीवीय विविधता शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग प्रसिद्ध पर्यावरणविद् 'लज्जाय' द्वारा किया गया था । इनके अतिरिक्त पर्यावरणविद् 'दासमैन' के द्वारा भी इस शब्द के प्रयोग मिलते हैं ।
जहां तक जैव विविधता (बायोडायवर्सिटी) शब्द के उल्लेख का प्रश्न है तो 'रोन्जन' नाम के पर्यावरणविद् के द्वारा सर्वप्रथम इस शब्द का प्रयोग किया गया। कहीं-कहीं इस संबंध में प्रोफेसर 'विलसन' के नाम का भी उल्लेख मिलता है । 
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह शब्द चर्चा में तब आया जब 1987  नॉर्वे में हुए एक सम्मेलन में नॉर्वे के प्रधानमंत्री के द्वारा सतत या धारणीय विकास के विचार के साथ अपनी "ब्रंटलैंड" रिपोर्ट" प्रस्तुत की गई।  
इस रिपोर्ट के द्वारा सर्वप्रथम विश्व के समक्ष धारणीय विकास की विचारधारा को प्रस्तुत किया गया।  धारणीय विकास की विचारधारा की मूल भावना यह थी कि "हम अपनी पीढ़ी के विकास हेतु प्रकृति प्रदत्त संसाधनों विशेषकर जैविक संसाधनों का प्रयोग किस प्रकार करें कि आने वाली पीढ़ी उन संसाधनों की कमी महसूस ना करें।" चूँकि इस विचारधारा में  विशेषतः जैविक संसाधनों के संरक्षण की बात की गई थी।  अतः जैविक विविधता पर चर्चा भी अनिवार्य हो गई थी।  यह स्पष्ट हो गया था कि जिस देश के पास जितनी अधिक जैव विविधता होगी, वह उतना ही समृद्ध भविष्य वाला देश होगा। 

 जैव विविधता की परिभाषा

हालांकि जैव विविधता स्वयं में एक वृहद अध्ययन क्षेत्र वाला विषय है।  किंतु संक्षेप में "एक निश्चित क्षेत्र के अंतर्गत वहां की जीवीविविधता (जेनेटिक डायवर्सिटी), वहां पाई जाने वाली प्रजातीय विविधता (स्पेसीज  डायवर्सिटी) एवं पारिस्थितिकी तंत्र (इकोसिस्टम) के योग को  उस क्षेत्र की जैविक विविधता के रूप में परिभाषित कर सकते हैं। "

जैव विविधता के विभिन्न स्तर

 किसी स्थान की जैविक विविधता का अध्ययन निम्न तीन स्तरों के अंतर्गत किया जा सकता है :-
१.  जननिक  स्तर (genetic level)
२. प्रजातीय स्तर  (species level)
३. पारिस्थितिकी तंत्र स्तर  (ecosystem level)

जननिक  स्तर 

हम जानते हैं कि एक ही प्रजाति के जीवों में पर्याप्त जननिक  अंतर प्राप्त होते हैं अर्थात एक ही प्रजाति के अंदर भिन्न लक्षण वाले जीव होते हैं।  उदाहरण के लिए एक ही क्षेत्र के मानव में, यहां तक कि एक ही माता-पिता की संतानों में भी 'जीन' के स्तर पर पाई जाती है।  यही भिन्नता उस प्रजाति की उत्तरजीविता बढ़ाने में सहायक होती है। जननिक  स्तर पर जितनी अधिक भिन्नता होगीसंबंधित प्रजाति की उत्तरजीविता उतनी ही अधिक होगी क्योंकि इसी कारण विपरीत परिस्थितियों में प्रतिरोध की क्षमता में भी भिन्न होगी और एक समान विषम परिस्थिति में समस्त प्रजाति का विनाश नहीं होगा।  इस प्रकार जब किसी एक प्रजाति के अंतर्गत जीन के स्तर पर पाई जाने वाली विविधता का अध्ययन किया जाता है तो उसे जननिक  स्तर की विविधता के रूप में जाना जाता है। 

प्रजातीय स्तर 

जिस प्रकार एक प्रजाति के अंदर जननिक  स्तर पर पर्याप्त विविधता पाई जाती है, उसी प्रकार एक क्षेत्र या पारितंत्र में एक से अधिक प्रकार की प्रजातियां पाई जाती हैं।  प्रजाति के स्तर पर पाई जाने वाली विविधता क्षेत्र की समस्त जीवो की उत्तरजीविता में वृद्धि कर देती है। इसे हम  खाद्य श्रंखला के उदाहरण से स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं।  किसी पारिस्थितिकी तंत्र की खाद्य श्रंखला में जितनी अधिक प्रजातियों का समावेश होगा अर्थात खाद्य श्रृंखला जितनी अधिक जटिल होगी वह उतने ही अधिक समय तक स्वयं को जीवित रख पाएगी।  जब हम किसी एक पारिस्थितिकीय तंत्र  के अंतर्गत समाहित विभिन्न प्रकार की प्रजातियों  के मध्य पाई जाने वाली विविधता का अध्ययन करते हैं तो वह प्रजातीय  स्तर पर पाई जाने वाली विविधता कहलाती है। 

पारिस्थितिकी तंत्र स्तर

किसी क्षेत्र में कितने पारिस्थितिकी तंत्र हैं, इसी तथ्य पर उस क्षेत्र की जैविक विविधता निर्भर करती है | अधिक पारिस्थितिकी तंत्र अधिक जैविक विविधता तथा अधिक उत्तरजीविता |
निष्कर्ष अतः किसी क्षेत्र की जैविक विविधता, उक्त तीनों स्तरों पर पाई जाने वाली विविधता सम्मिलित रूप से निर्भर करती है|

जैव विविधता का मापन

किसी क्षेत्र की जैविक विविधता का मापन तीन स्तरों पर किया जाता है:-

१-     अल्फा  मापन

इस मापन विधि में हम एक ही प्रजाति के जीव के मध्य पाई जाने वाली विविधता एवं उनमें पाए जाने वाले अंतर का मापन करते हैं| अर्थात जब हम एक समय में एक ही प्रजाति के विभिन्न जीवो के मध्य पाई जाने वाली विविधता का अध्ययन करते हैं तो वह अल्फा मापन विधि कहलाती है|

२-     बीटा मापन विधि

जब हम एक ही क्षेत्र के दो भिन्न पारिस्थितिकी तंत्रों में पाई जाने वाली विभिन्न प्रजातियों एवं उनकी  भिन्नताओं का अध्ययन करते हैं तो उसे बीटा मापन कहते है|

३-     गामा मापन विधि

किसी क्षेत्र के अंतर्गत पाए जाने वाले समस्त पारिस्थितिकी तंत्रों एवं उनके मध्य पाई जाने वाली विभिन्नताओं या विविधताओं का अध्ययन गामा मापन विधि के अंतर्गत आता है|

जैव विविधता प्रवणता ( biodiversity gradient)

जैवविविधता प्रवणता का अध्यन तीन खंडों में किया जा सकता है
1.      भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर जैव विविधता घटती है| इस के निम्न कारण हो सकते हैं
                   I.        उच्च अक्षांश अक्षांशों ने अनेक बार हिमयुग का सामना किया है जिससे वहां जैव विविधता को पल्लवित होने का पर्याप्त अवसर नहीं मिला |
                    II.     इसके विपरीत उष्ण कटिबंध में प्रजातियों के विकास हेतु पर्याप्त समय      एवं संभावनाएं मिली है |
                 III.       उष्ण कटिबंध में मौसमी परिवर्तन कम एवं अनुकूल होते हैं जो प्रजातियों    के विकास में सहायक होते हैं |
               IV.         उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पर्याप्त सौर ऊर्जा प्राप्त होती है, जिससे विभिन्न   प्रजातियों को विकसित होने का अवसर मिलता है |
2.  ऊंचाई पर जाने पर जैव विविधता में कमी आती जाती है क्योंकि परिस्थितियां जातियों के विकास हेतु प्रतिकूल होती जाती हैं |
3.  अन्वेषण क्षेत्र में वृद्धि करने पर भी जैव विविधता में वृद्धि होती है, क्योंकि क्षेत्र विस्तृत होने पर अधिक प्रकार की प्रजातियां इसमें शामिल होती जाती हैं |  हंबोल्ट इस विचार के पोषक थे |

जैव विविधता तप्त स्थल   

(biodiversity hotspot)

जैव विविधता तप्त स्थल की संकल्पना के प्रतिपादक ब्रिटिश पर्यावरणविद नॉर्मन मायर्स थे | किसी क्षेत्र को तप्त स्थल के रूप में परिभाषित करने हेतु उसके द्वारा निम्न दो शर्तों को पूरा करना अनिवार्य है :-
१.   एक उस क्षेत्र में न्यूनतम 15 से स्थानिक(endemic) संवहनीय प्रजातियां पाई जाती हैं|
२.     उनके 70% प्राकृतिक आवास नष्ट हो गए हैं |
उक्त दोनों शर्तों को पूरा करने वाले क्षेत्रों को जैव विविधता तप्त स्थल के रूप में परिभाषित किया जा सकता है | वर्तमान में विश्व में कुल 36 तप्त स्थल है | जिनमें से चार भारत में स्थित है |
                          I.             हिमालय क्षेत्र (पूर्वी हिमालय)
                         II.            पश्चिमी घाट
                        III.          पूर्वी सीमांत क्षेत्र (भारत-म्यांमार सीमा)
                        IV.            निकोबार दीप समूह (सुंडा क्षेत्र)

इसके अलावा विश्व में 17 महाविविधता वाले क्षेत्र (जहां 5000 से अधिक स्थानीय संवहनीय प्रजातियां पाई जाती हैं) घोषित हैं | भारत उनमें से एक है |

जैव विविधता से लाभ

यदि हम जैव विविधता से मानव जाति को होने वाले लाभों को वर्गीकृत करें तो मुख्यतः निम्न चार प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं |
१.    जातियों में इसके अंतर्गत सीधे प्राप्त होने वाले लाभ अप्रत्यक्ष लाभ आते हैं, जैसे – भोजन, ईंधन, जल, चारा, आदि
२. नियंत्रण कारी सेवाएं - इनमें कुछ अप्रत्यक्ष लाभ सम्मिलित है जैसे बाढ़ नियंत्रण,सूखा नियंत्रण, वायु प्रदूषण, नियंत्रण रोग, नियंत्रण मौसम एवं जलवायु संबंधी लाभ |
३. समर्थनकारी सेवाएं इन सेवाओं में मृदा निर्माण एवं परागण जैसे लाभ जो नियमित रूप से पूर्व से उपलब्ध संसाधनों को उर्वरता प्रदान करते हैं, इसके अंतर्गत आते हैं|
४. सांस्कृतिक सेवाएं - इस वर्ग के अंतर्गत शैक्षणिक, आध्यात्मिक एवं पर्यटन जैसे लाभों को रखा जा सकता है |

जैव विविधता को होने वाली क्षति

किसी क्षेत्र की जैविक विविधता को क्षति पंहुचाने वाले विभिन्न कारणों को मुख्यतः निम्न दो भागों में वर्गीकृत कर सकते हैं :-
१-     प्राकृतिक कारक जैसे :-
Ø  महाद्वीपीय विस्थापन
Ø  प्लेट विवर्तनिकी
Ø  ज्वालामुखी
Ø  भूकंप
Ø  चक्रवात
Ø  जलवायु परिवर्तन आदि
परंतु इस प्रकार के होने वाली क्षति की भरपाई प्रकृति स्वयं कर लेती है | वास्तव में यह सभी संतुलनकारी कारक है |

२-     मानव जनित कारक
वास्तव में यही कारक जैविक विविधता को वास्तविक क्षति पहुंचाते हैं इनमें :-
Ø  आवास विनाश
Ø  आवास विखंडन
Ø  औद्योगिकरण
Ø  निर्वनीकरण
Ø  कृषि संबंधी गतिविधियां आदि आते हैं |

जैविक विविधता को बचाने हेतु उपाय

विभिन्न प्राकृतिक एवं मानवीय गतिविधियों से किसी क्षेत्र की जैविक विविधता को बचाने हेतु प्रकार के उपाय किए जा सकते हैं :-
१-     स्वस्थाने (in situ)
इसके अंतर्गत निम्न उपाय आते हैं
Ø  वन्य जीव अभ्यारण स्थापित करके
Ø  राष्ट्रीय पार्क
Ø  जैव आरक्षित क्षेत्र
Ø  संरक्षण रिजर्व
Ø  सामुदायिक रिजर्व
२-     परा स्थाने (ex situ) 2
यथा :-
Ø  चिड़ियाघर
Ø  वृक्ष उद्यान
Ø  वनस्पति उद्यान
Ø  जीन बैंक   
Ø  जनन द्रव्य बैंक


 क्रमशः.....


Comments

  1. एक जटिल विषय को बहुत सरल शब्दो मे परिभाषित किया है , गुरु जी

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  2. Ek hi platform pr Aapne bhut sari information dedi ,aapne bhut hi aacha work Kiya.🙏

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  3. बहुत बढ़िया है।केशव जी।एक विनम्र निवेदन है,यदि वैज्ञानिकों तथा विदों के नाम साथ में अंग्रेज़ी भाषा में भी दें तो उत्तम होगा।

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    1. ok, next time I'll take care of it... thank you...

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    2. please subscribe the blog. let me know you....

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