Ancient History of

मौर्य साम्रज्य का शासनकाल 321 ई0 पू0 से 184 ई0 पू0 तक चलामौर्य वंश का संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य था322 ई0 पू0 में चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की सहायता से नन्द वंश के अंतिम शासक धनानंन्द की हत्या करके मौर्य साम्राज्य की स्थापना की

यूनानी साहित्य में चन्द्र्गुप्त मौर्य को सैंड्रोकोट्स कहा गया है305 ई0 पू0 में चन्द्रगुप्त का संघर्ष सिकंदर के सेनापति सेल्युकस निकोटर से हुई जिसमें चंद्रगुप्त की विजय हुईचंद्रगुप्त के शासनकाल में मेगस्थनीज दरबार में आया और पाँच वर्षो तक पाटिलपुत्र रहामेगस्थनीज ने इन्डिका की रचना की जिसमें मौर्य साम्राज्य की दशा का वर्णन हैचंद्रगुप्त मौर्य ने सौराष्ट्र,मालवा,अवन्ति के साथ सुदूर साउथ भारत को मगध राज्य में मिलायाचंद्रगुप्त ने बाद में जैन धर्म स्वीकार किया व भद्रबाहु से जैन धर्म को स्वीकार कियाचंद्रगुप्त मौर्य ने ई0 पू0 300 में अनशन व्रत करके कर्नाटक के श्रवणगोला में अपने शरीर का त्याग किया300 ई0 पू0 में बिंदुसार मगध की गद्दी पर बैठायूनानी इतिहासकारों ने बिंदुसार को अपनी रचनाओं में अमित्रोकेट्स की संज्ञा दी है जिसका अर्थ होता है शत्रु का विनाशकवायु पुराण में बिंदुसार को भद्रसार तथा जैन ग्रंथों में सिंहसेन कहा गया हैबिंदुसार के शासन काल में तच्शिला में दो विद्रोह हुए पहले विद्रोह को उसके पुत्र सुसीम ने दबाया व दूसरे को अशोक ने दबायाबिंदुसार की मृत्यु 273 ई0 पू0 हुईबिंदुसार की मृत्यु के 4 वर्ष बाद ई0 पू0 269 में अशोक मगध की गद्दी पर बैठासिंहसनारुढ होते समय अशोक ने ‘देवनामप्रिय’ तथा प्रियदर्शी’ जैसी उपाधि धारण कीअशोक की माता का नाम सुभ्रद्रांगी था और वह चम्पा (अंग)की राजकुमारी थीअशोक ने कश्मीर तथा खेतान पर अधिकार किया कश्मीर में अशोक ने श्रीनगर की स्थापना कीराज्यभिषेक के 8वें वर्ष 261ई0 पू0 में अशोक ने कलिंग पर आक्रमण कियाकलिंग के हाथी गुम्फा अभिलेख से ज्ञात होता है कि उस समय कलिंग पर नंदराज नाम का कोई राजा राज्य कर रहा थाकलिंग युध्द में व्यापक हिंसा के बाद अशोक ने बौध्द धर्म अपनायाअशोक ने बौध्द धर्म का प्रचार-प्रसार किया उसने अपने पुत्र महेंद्र व पुत्री संघमित्रा को बौध्द धर्म के प्रचार के लिये श्रीलंका भेजाअशोक ने 10 वें वर्ष में बोधगया व 20 वें वर्ष में लुम्बिनी की यात्रा कीअशोक ने ‘धम्म’ को नैतिकता से जोडा इसके प्रचार प्रसार के लिये उसने शिलालेखों को उत्कीर्ण करायाअशोक के शिलालेख ब्राही,ग्रीक,अरमाइक तथा खरोष्ठी लिपि में उत्कीर्ण है तथा स्तम्भ लेख प्राकृत भाषा में हैसर्वप्रथम 1750 ई0 में टील पैंथर ने अशोक की लिपि का पता लगाया1837 ई0 मे जेम्स प्रिंसेप ने अशोक के अभिलेखों को पढने में सफलता प्राप्त कीअशोक के बाद कुणाल गद्दी पर बैठा वृहद्रथ अंतिम मौर्य शासक बनापुष्यमित्र शुंग ने वृहद्रथ की हत्या करके शुंग वंश की नींव रखीपुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण था व उस ने भागवत धर्म की स्थापना कीपुष्यमित्र शुंग ने दो अश्वमेघ यज्ञ कियेशुंग वंश का अंतिम शासक देवभूति था जिसकी हत्या 73 ई0 पू0 में उसके ब्राह्मण मंत्री वासुदेव ने की थीकण्व वंश की स्थापना वासुदेव ने 73 ई0 पू0 में की थीइस वंश का शासन मात्र 45 वर्ष रहा जिसमें 4 शसकों ने राज्य कियासातवाहन वंश की सिमुक ने की गौतमीपुत्र शतकर्णी इस वंश का शक्तिशाली शासक थागौतमीपुत्र शतकर्णी ने कार्ले का चैत्य मंदिर ,अजंता-एलोरा की गुफओं व अमरावती कला का विकास करायासातवाहन वंश मातृसत्तामक था तथा उनकी भाषा प्राकृत व लिपि ब्राह्मी थीसातवाहन शासकों ने सीसा,चाँदी,ताँबा व पोटीन के सिक्के चलायेडेमेट्रियस-प्रथम ने ई0 पू0 183 में मौर्योत्तर काल में पहला यूनानी आक्रमण कियाभारत में सोने के सिक्के जारी करने वाला पहला शासक वंश हिंद यूनानी थासबसे प्रसिध्द यवन शासक मिनांडर था जो बौध्द साहित्य में मिलिंद के नाम से प्रसिध्द हैशक वंश का सबसे प्रतापी शासक रुद्रामन थाविक्रमादित्य ने शकों पर जीत की स्मृति में 57 ई0 पू0 में विक्रम संवत चलायागोन्दोफर्निस पल्लवों का पहला शासक था इसके शासन काल में सेंट थॉमस ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार करने भारत आयाकुजुल कडफिसेस ने 15 ई0 में कुषाण वंश की स्थापना की उसका उत्तराधिकारी विम कडफिसेस थाकुषाण वंश का सबसे महत्वपूर्ण शासक कनिष्क था जो 78 ई0 मे गद्दी पर बैठाकनिष्क ने पुरुषपुर को अपनी राजधानी बनाया तथा राज्यारोहण के वर्ष से शक संवत प्रारम्भ कियाचरक ‘चरक सहिंत’ के रचनाकार चरक को चिकित्साशस्त्र का जनक कहा जाता है इस ग्रंथ में रोग निवारण की औषिधियों का वर्णन मिलता हैगुप्त वंश के शासन का प्रारम्भ श्रीगुप्त द्वारा किया गया किंतु इस वंश का वास्तविक शासक चंद्र्गुप्त ही थाचंद्रगुप्त ने महाराजाधिराज की उपाधि ग्रहण कीचंद्र्गुप्त के बाद उसका पुत्र समुद्रगुप्त शासक बना जो कि एक उच्च कोटि का कवि थाचंद्र्गुप्त2 के शासन काल में चीनी यात्री फाह्रान भारत यात्रा पर आयाकुमारगुप्त के शासन काल में नालान्दा विश्वविद्यालय की स्थापना हुई इसे ऑक्सफोर्ड ऑफ महायान कहा जाता हैगुप्त युग में विभिन्न कलाओं मूर्तिकला, चित्रकला, वास्तुकला, संगीत, तथा नाट्य कला का अत्यधिक विकास हुआ

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