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मौर्यकालीन स्थापत्य कला

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मौर्यकालीन कला   सारनाथ   स्तूप कला  की दृष्टि से  हड़प्पा की सभ्यता  और  मौर्यकाल  के बीच लगभग 1500 वर्ष का अंतराल है। इस बीच की कला के भौतिक  अवशेष  उपलब्ध नहीं है।  महाकाव्यों  और बौद्ध ग्रंथों में हाथीदाँत,  मिट्टी  और  धातुओं  के काम का उल्लेख है। किन्तु मौर्यकाल से पूर्व  वास्तुकला  और  मूर्तिकला  के मूर्त उदाहरण कम ही मिलते हैं। मौर्यकाल में ही पहले—पहल कलात्मक गतिविधियों का  इतिहास  निश्चित रूप से प्रारम्भ होता है। राज्य की समृद्धि और मौर्य शासकों की प्रेरणा से कलाकृतियों को प्रोत्साहन मिला। इस युग में कला के दो रूप मिलते हैं। एक तो राजरक्षकों के द्वारा निर्मित कला, जो कि मौर्य प्रासाद और अशोक स्तंभों में पाई जाती है। दूसरा वह रूप जो परखम के यक्ष  दीदारगंज  की चामर ग्राहिणी और वेसनगर की यक्षिणी में देखने को मिलता है। राज्य सभा से सम्बन्धित कला की प्रेरणा का स्रोत स्वयं सम्राट था। यक्ष—यक्षिणियों में हमें लोककला का रूप मिलता है। लोककला के रूपों की परम्परा पूर्व युगों से काष्ठ और मिट्टी में चली आई है। अब उसे  पाषाण  के माध्यम से अभिव्यक्त किया गया। राजकीय कला राजकीय कला का